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किसी से मेरी प्रीत लगी अब क्‍या करूँ / गोपाल सिंह नेपाली

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हाय किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ
अब क्या करूँ रे
अब क्या करूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ

पास-पड़ोस मैं
पास-पड़ोस मैं बाजा बजे रे
दूल्हा के संग नयी दुल्हन सजे रे
में तो बड़ी-बड़ी
में तो बड़ी-बड़ी
आँखों वाली देखा करूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ
अब क्या करूँ रे
अब क्या करूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ

हाय
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ
सोलह बरस की में तो
खुशबू हूँ खास की में तो
बाँकी-मतवाली में टोप्याली हूँ रस की

चढ़ती उमर नहीं
बात मेरे बस की
जवानी मेरे बस की
नहीं जी मेरे बस की
हाय मोर रामा
अकेली यहाँ पड़ी-पड़ी
आहें भरूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ
अब क्या करूँ रे
अब क्या करूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ

अब ना रुकूँगी किसी के रोके
पीहर चलूँगी
में पिया की हो के
डोलिया हिले-डोले
डोलिया हिले-डोले
में तो बैठी रहूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ
अब क्या करूँ रे
अब क्या करूँ
किसी से मेरी प्रीत लगी
अब क्या करूँ.