भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसे चढ़ाएँ फूल आजकल / हरि फ़ैज़ाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसे चढ़ाएँ फूल आजकल
पीपल हुए बबूल आजकल

लुत्फ़ सियासत में ही है अब
बाक़ी काम फ़ुज़ूल आजकल

गाँवों को बदनाम करो मत
कहाँ नहीं है धूल आजकल

कोई क्या कर लेगा उसका
दिन उसके अनुकूल आजकल

सोच-समझकर कुछ तय करना
निभते नहीं उसूल आजकल

यूँ ही बच्चे नहीं देखते
सपने ऊल जलूल आजकल