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किसे / अशोक वाजपेयी

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मैं अपनी चीख़ से
प्रार्थना से
गान से
किसे पुकारता हूँ-
सिर्फ़ उसे
जो एक अनसुनी दोपहर में
सुन्दर और दूर है।

गिरजाघर में घण्टियाँ बज रही हैं
ईश्वर बुला रहा है
लेकिन इनमें से एक भी
तुम्हारे लिए नहीं _