भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसे / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
मैं अपनी चीख़ से
प्रार्थना से
गान से
किसे पुकारता हूँ-
सिर्फ़ उसे
जो एक अनसुनी दोपहर में
सुन्दर और दूर है।
गिरजाघर में घण्टियाँ बज रही हैं
ईश्वर बुला रहा है
लेकिन इनमें से एक भी
तुम्हारे लिए नहीं _