किस्सा ऊधम सिंह / रागनी 14 / रणवीर सिंह दहिया
वार्ताः जीत कौर को सुनाम के शहर में सूचना मिलती है ऊधम सिंह की शहादत की। वह मन ही मन रो पड़ती है पुरानी मुलाकातों को याद करके। समझ नहीं आता उसे कि वह ऊधम सिंह के साथ अपने रिश्ते को कैसे समझे। ऊधम सिंह का आजादी का सपना ही उसे सही रिश्ता लगता है उसके साथ। क्या सोचती है भला।
कौण किसे की गेल्यां आया कौण किसे की गैल्यां जावै॥
ऊधम सिंह के सपन्यां का यो भारत ईब कौण रचावै॥
किसनै सै संसार बनाया किसनै रच्या समाज यो
म्हारा भाग तै भूख बताया बाधैं कामचोर कै ताज यो
मानवता का रूखाला आज पाई-पाई का मोहताज यो
अंग्रेज क्यों लूट रहया सै मेहनत कश की लाज यो
क्यों ना समझां बात मोटी अंग्रेज म्हारा भूत बणावै॥
कौण पहाड़ तोड़ कै करता धरती समतल मैदाल ये
हल चला खेंती उपजावै उसे का नाम किसान ये
कौन धरा नै चीर कै खोदै चांदी सोने की खान ये
ओहे क्यों कंगला घूम रहया गोरा बण्या धनवान ये
म्हारे करम सैं माड़े कहकै अंग्रेज हमनै यो बहकावै॥
हम आजादी चाहवां अक अनपढ़ता का मिटै अन्धकार
हम आजादी चाहवां अक जोर जुल्म का मिटै संसार
हम आजादी चाहवां अक ऊंच नीच का मिटै व्यवहार
हम आजादी चाहवां अक लूट पाट का मिटै कारोबार
जात पात और भाग भरोसै या कोन्या पार बसावै॥
झूठ्यां पै ना यकीन करां म्हारी ताकत सै भरपूर
म्हारी छाती तै टकराकै गोली होज्या चकना-चूर
जागते रहियो सोइयो मतना ना म्हारी मंजिल दूर
सिंरजन हारे हाथ म्हारे सै घणे अजब रणसूर
देश की आजादी खातर ऊधम सिंह राह दिखावै॥