भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस्सा ऊधम सिंह / रागनी 2 / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता: शहीद ऊधम सिंह एक बहुत ही गरीब परिवार का बच्चा था, जब पूरे देश में अंग्रेजो का जोर जुल्म चल रहा था तो पंजाब में भी जलियां वाला बाग जैसा हत्या काण्ड 1919 में वैशाखी के दिन होता है। इसका ऊधम सिंह के दिलो दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। एक दिन वह बैठा-बैठा सोचने लगता है। क्या बताया भलाः

भारत देश पै जिसनै भी अत्याचार भूल कै था ढाया॥
जुल्म ढावणिया का वीरों नै था नामों निशान मिटाया॥
हिर्णा कुश दुर्योधन कंस नै जुल्म घणा ढाया था
म्हारे वीरां नै बढ़ आगै इनको सबक सिखाया था
जालिम खत्म करने खातर अपना खून बहाया था
ठारा सौ सतावण की जंग मैं होसला खूब दिखाया था
सिख हिंदू मुस्लिम सबनै हंस-हंस वैफ शीश कटाया॥
ईस्ट इंडिया आई देश मैं अपणे पैर पसार लिये
राज पै करकै कब्जा बहोत घणे अत्याचार किये
गूंठे कटाये कारीगरां के मौत के घाट उतार दिये
मल-मल ढाका आली थी उसपै कसूते वार किये
बिगाड़ कै शिक्षा म्हारी यो राह गुलामी का दिखाया॥
यो वीर लाडला देश कातै ना अपणे प्रण तै भटकै
कोए करै प्राण न्यौछावर हंस-हंस फांसी पै लटकै
कई खेलगे खून की होली छाती खोल दी बेखटकै
पिठू अंग्रेजा की झोली मैं बहोत घणा यो मटकै
अंग्रेजां की पींड़ी कापी थी जिब जनता नै नारा लाया॥
भारत देश यो निराला बिरले घणे इसके माली
किस्म-किस्म के फूल खिले कई ढंग के पत्ते डाली
खड़ी फसल जब लूटी म्हारी तो खड़या रोया हाली
जलियां वाले बाग के अन्दर ये बही खून की नाली
रणबीर सिंह बरोने आले नै सुण कै छन्द बनाया॥