भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस्सा ऊधम सिंह / रागनी 7 / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ताः ऊधम सिंह एक दिन जीत कौर के पास आता है। बहुत परेशान था। जीत कौर परेशानी का कारण पूछती है। ऊधम सिंह कहता है कि मुझे लोग समझाते है कि अंग्रेजों के राज में तो सूरज नहीं छिपता। ये भारत देश को छोड़ कर नहीं जाने वालें मुझे बड़ी परेशानी होती है यह सुनकर। क्या बताया भलाः

हाल देख कै जनता का कोए बाकी रही कसर कोन्या॥
अंग्रेजां का जुलम बढ़या ईब बिल्कुल बच्या सबर कोन्या॥
सोने की चिड़िया भारत जमा लूट कै गेर दिया
किसान और मजदूर बिचारा जमा चूट कै गेर दिया
क्यों खसूट कै गेर दिया आवै जमा सबर कोन्या॥
सिर बी म्हारा जूती म्हारी म्हारे सिर पै मारैं सै
बोलैं जो उनके साहमी यो उसके सिर नै तारैं सै
कंस का रूप धारैं सै छोडया कोए नगर कोन्या॥
म्हारी कमाई मौज उनकी म्हारी समझ ना आई
देश की तरक्की के ना पै आड़ै जमकै लूट मचाई
या बन्दर बांट मचाई आसान रही बसर कोन्या॥
उनके पिठ्ठु कहते सुने राज मैं ना सूरज छिपता
क्यूकर काढ़ो देश तै रणबीर सिंह कुछ ना दिखता
हुक्म बिना ना पत्ता हिलता कहते तनै खबर कोन्या॥