पुरानी कुरसी पर
खुला है नया अध्याय,
गमछा भी वहीं छूटा है सफ़हों पर
जहाँ टूट गया किस्सा
किस्सा जो किताब मंे था
मेल नहीं खाता था
असल किस्से से;
असल में अजीब गड़बड़झाला था
शब्द नहीं थे वहाँ
जो असल किस्से को
बयान कर सकें
हू-ब-हू
देर तक सोचता रहा पढ़ने वाला
फिर शब्द लेने
कहीं और चल दिया किस्से के मुताबिक़
वह कहाँ गया होगा आखि़रकार
कि आज तक लौटा नहीं!