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किस कदर मुझ को ना-तवानी है / फ़कीर मोहम्मद 'गोया'
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किस कदर मुझ को ना-तवानी है
बार-ए-सर से भी सर-गिरानी है
हम नहीं शमा हों जो अश्क-फिशां
कार-ए-उष्षाक़ जाँ-फ़िषानी हैं
दिल भी उस से उठा नहीं सकते
ना-तवानी सी ना-तवानी है
क़द-ए-मौजूँ के इशक़ में ‘गोया’
रात दिन शुग़्ल-ए-शेर-ख़्वानी है