किस दाने पर लिखा है भूखे का नाम? / सरोज कुमार
भूखे ने खेत से पूछा:
क्या तुझे वह दाना दिखा है,
जिस पर मेरा नाम लिखा है?
खेत ने आँखों देखी कही:
नाम किसी दाने पर
लिखा नहीं आता है,
जो इसको बोता है,
सो इसको पाता है,
किसान ने यह सुन लिया,
सुनकर सिर धुन लिया,
भूखे से आँख मिलते ही
वह बोला: हाँ मैं ही बोता आया हूँ
इसे सदा,
पर पाया है इसे मैंने
यदाकदा!
जो इसको बोता है
जीवन भर रोता है!
दानों कि किस्मत से मेरा क्या काम है
दानों कि मंजिल गोदाम है!
असमंजस से भरे भूखे ने
अपना प्रश्न
जब गोदाम को दुहराया
तब उसने बतलाया
कि उसने तो नहीं देखा
दानों पर कभी नाम ,
ले वो जरूर जाता है
जो देता है दाम!
भूखे ने तब जाकर
रुपए से कहा:
तू बहुत इतराता है
बता, क्या दानों का तू ही
भाग्य विधाता है?
रुपये ने कहा:
मैं क्या हूँ? हाथ का मैल हूँ!
होना था चमत्कार पसीने का
पर इधर शकुनि का खेल हूँ!
शायद, दाना ही श्याना है
उसने ही जाना है
वह किसका सपना है,
किसका वह खाना है!
दाने के पास जाने पर
अपना प्रश्न दुहराने पर
भूखे को उत्तर मिला:
मुझ पर लिखा नहीं आता
किसी का नाम,
मुँह में ही होती है
खाने वाले से राम-राम!
तुम भी मुझे पा सकते हो
भर पेट खा सकते हो,
खरीदो!
मांगो!
या छीनों!
या चुपचाप मर जाओ
जो नहीं सधें तीनों!