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किस पनघट पर बाँधी है आस / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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किस पनघट पर बाँधी है आस
अँजुरी भर
पानी है
सागर भर प्यास,
हमने किस पनघट पर
बाँधी है आस

बिजली के
खम्भे हैं
सड़कों के जाल,
पर सूखी नदियाँ हैं
सूखे हैं ताल,
बातों की फसलें हैं
धरती के पास

अम्बर में
बादल तो
छाये घनघोर,
बिन बरसे
चले गये
जाने किस ओर,
मुरझाया उपवन है
सावन का मास।