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किस परी को यहाँ उतारा है / गोविन्द राकेश
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किस परी को यहाँ उतारा है
जिसने ये घर मेरा सँवारा है
आज उसकी तरफ़ नहीं कोई
कौन उसका अभी सहारा है
खो चुका है चमक-दमक अपनी
वो अभी डूबता सितारा है
पार जाना लगे बहुत मुश्क़िल
दूर होने लगा किनारा है
रात दिन मौत की तमन्ना थी
हमने वह वक़्त भी गुज़ारा है