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किस पर करूँ विश्वास / सुनीता शानू
Kavita Kosh से
फिर चली आँधी
कि उड़ चले-
पत्ते सभी।
चरमराया पेड़
कुछ डालियाँ भी टूटी तभ।
आसमान में
फैल गई गौरैया की चीत्कार।
ढह गई
तत्काल ही
विश्वास की दीवार।
टूट गयी डाल
और बिखर गया परिवार-
छूट गये-
स्नेह के बंधन
जो बाँधे हुए थे द्वार।
क्रन्दन करती गोरैय्या-
थक, निढाल होकर बोली
“हे आश्रयदाता-
बतला क्यों तुने की है ठिठोली?
“बाँध रखा था
तुमने ही
तिनको से मेरा घरौंदा
एक जरा सी आँधी ने
पैरों तले क्यों रौदा?
सारे जग को
होती है
बस तुझ पर ही आस।
तुमने बनाया, तोड़ दिया-
किस पर करूँ विश्वास?”