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किस शिखर को चूमने कदम बढ़ाए जा रहा है? / पल्लवी मिश्रा

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किस शिखर को चूमने कदम बढ़ाए जा रहा है?
किस खुशी के वास्ते तू गम उठाए जा रहा है?

यहाँ कोई भी न आएगा, सब बड़े मसरूफ हैं,
किसकी ख़ातिर रास्ते पर शम्मा जलाए जा रहा है?

सबने ही वादा किया था, पर निभाया क्या किसी ने?
तू ही फिर क्यूँकर अकेला वादा निभाए जा रहा है?

कोई तुझको निश्नगी में इक बूँद भी देगा नहीं,
काम आएँगे अश्क तेरे, इन्हें क्यूँ बहाए जा रहा है?

है जहाँ ये संगदिल और लोग इसमें तंगदिल,
दीवानगी में क्यूँ भला सबकुछ लुटाए जा रहा है?