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किस से रूठें किस से बोलें / राजेश चड्ढा

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किस से रूठें किस से बोलें
किस की मानें किस को तोलें

जिस का पलडा देखें भारी,
ऐन वक़्त पर उस के हो लें

गंगा जब दर से ही निकले,
क्यों ना हाथ उसी में धो लें

तुम भी सच जब ताक पे रखो,
हम भी झूठ कहाँ तक बोलें

अपनी भूख पे अपनी रोटी,
नहीं मिली सामूहिक रो लें