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कि जितनी कोशिशों से / नमन दत्त
Kavita Kosh से
कि जितनी कोशिशों से मैं तुम्हें भुलाता हूँ।
क़रीब उतने ही तुमको मैं अपने पाता हूँ।
उन्होंने की ही नहीं, फिर वह निबाहें क्यूँ कर,
मैंने तो की है मुहोब्बत सो मैं निभाता हूँ।
तुम्हारे ग़म से रौशनी है दिले बिस्मिल में,
सरे मज़ार मैं हर शब दिया जलाता हूँ।
ग़म की राहों पर कोई आ सके न बाद मेरे,
इसी ख़याल से ख़ुद नक्शे पा मिटाता हूँ।
ये मेरे शेर नहीं, दिल के दाग़ हैं "साबिर"
मिले हैं आपसे जो, आपको दिखाता हूँ।