भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कि मैं होऊँ ही नहीं / सुभाष राय
Kavita Kosh से
मैं होना चाहता हूँ सबके लिए
दोस्त के लिए, दुश्मन के लिए
मानुष के लिए, अमानुष के लिए भी
मैं होना चाहता हूँ सबके होने या न होने में
मैं होना चाहता हूँ इस तरह कि मैं होऊंँ ही नहीं