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कि मैं होऊँ ही नहीं / सुभाष राय

मैं होना चाहता हूँ सबके लिए
दोस्त के लिए, दुश्मन के लिए
मानुष के लिए, अमानुष के लिए भी

मैं होना चाहता हूँ सबके होने या न होने में
मैं होना चाहता हूँ इस तरह कि मैं होऊंँ ही नहीं