कि सुनु सखिया हे / भोजपुरी
कि सुनु सखिया हे।
गिरि-परबतवा के चीकट मटिया, ताहि तर बसले कोंहार।।१।।
हाँ रे, आछी-आछी घइला उरेहिय भइया कोंहरा,
कि लाई दिह तीतला मँजूर, कि सुनु सखिया हे।।२।।
हाँ रे, ओरे-पीछे लिखिह भइया हंस-वकउवा,
कि बीचे ठइयाँ तीतल मजूर, कि सुनु सखिया हे।।३।।
हाँ रे कंठ उरेहिय भइया तिरिया सक्षपति,
कि मिलि-जुलि पनिया के जाय, कि सुनु सखिया हे।।४।।
हाँ रे, दस सखी आगे चले, इस सखी पाछे,
दस-बीस गोहने लगाय, कि सुनु सखिया हे।।५।।
हाँ रे, सब सखी मिलि-जुलि पनिया के चलले,
कि ओही रे जमुनवा के तीर, कि सुनु सखिया हे।।६।।
हाँ रे, केहू सखि भरेले डाभक-डूभक,
केहू साखि घइला अलगावे, कि सुनु सखिया हे।।७।।
हाँ रे, एक त कमिनियाँ के गागर फूटे,
कि सब सखी रहेली तावायँ; कि सुनु सखिया हे।।८।।
हाँ रे, छोटकी ननदिया आहे बारा लहलबकी,
कि दउरल जाले हरवाही; कि सुनु सखिया हे।।९।।
हाँ रे, तोहरी तिरियबा भइया बिरहा के मातल,
कि गागर फोरिके लड़ावॉ; कि सुनु सखिया हे।।१0।।
हाँ रे, हरवा जोतत बहिनी फरवा भूलइले, कि सुनु सखिया हे।।११।।
हाँ रे, पनिया भरत बहिनि गागर फूटे,
त तिरिया के कौने बाटे दोस; कि सुनु सखिया हे।।१२।।
हाँ रे, हर जोती अइले, कुदार पारी अइले, कि पैना दिहले औठँगाय,
हाँ रे, सबकर तिरियया माता घरे-घरे देखीं,
हमरो तिरियवा कहाँ जाय, कि सुनु सखिया हे।।१३।।
हाँ रे, खाई लेहू पूता कि दही-दूध भोजनी, पीही लेहू गंगाजल पानी।
हाँ रे, जाये देहू ए पूता, अइसन तिरियवा,
कि कई देबो दोसर बियाह, कि सुनु सखिया हे।।१४।।
हाँ रे, अगिया लगइबों माता दही-दूध भोजनी, कि बजर पड़इबों तोहरे पानी।
हाँ रे, देहू माता हमरो त ढाल-तेरुअरिया,
से हम जाइब तिरिया उदेस, कि सुनु सखिया हे।।१५।।
हाँ रे एक कोस गइले, दोसर कोसे गइले, कि मिलि गइले गइया चरवाह,
हाँ रे, एही राहे देखल भइया तिरिया सदापति,
रुसल नइहर जाय, कि सुनु सखिया हे।।१६।।
हाँ रे, देखलों में देखलों भइया साँवर तिरियवा, मोहि देखि लेले मुँह फेरि।
हाँ रे, गोरवाँ में चूरा पहिने, हाथवाँ के कंगना,
कि रहिया चलेले झझकार, कि सुनु सखिया हे।।१७।।
हाँ रे, हरवा चलावत भइया हरवहिया, कि तुहुँ लाग भइया हमार।
हाँ रे, एही रहिया देखल भइया तिरिया सदापति
रुसल नइहर जाय, कि सुनु सखिया हे।।१८।।
हाँ रे, देखलों में देखलों साँवर तिरिया, मोहे देखि लेले मुँह फेर।
हाँ रे, झीनी-झीनी चीर पहिरे, हाथे फूटल घइला,
रहिया चलते झमकाय, कि सुनु सखिया हे।।१९।।
हाँ रे, नदिया के तीरे-तीरे धनिया जे मिलली, सइयों के पूजि गइले आस
हाँ रे, नाया घइला भरि माथे अलगवलें
कि धनिया चलेली मुसुकाय, कि सुनु सखिया हे।।२0।।
हाँ रे, हंसइत, विहँसत धरे चलि अइलें,
कि अब धनि लिहलीं मनाय, कि सुनु सखिया हे।।२१।।