कीजे न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
दे आग अभी शोल-ए-एआवाज़ क़फ़स को
ऐ इश्क़ न फ़रहाद बचा तुझसे न परवेज़
बा-ख़ाक बराबर किया तू नाकसो-कस को
कीजे न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
दे आग अभी शोल-ए-एआवाज़ क़फ़स को
ऐ इश्क़ न फ़रहाद बचा तुझसे न परवेज़
बा-ख़ाक बराबर किया तू नाकसो-कस को