कीमत / लालित्य ललित
कब तक देती रहेगी
स्त्री
अग्नि परीक्षा
सीता से ले कर
आज की स्त्री तक
भ्रूण हत्या से ले कर
सौन्दर्य प्रतियोगिता
की अंतहीन प्रतिस्पर्धा में
कब तक
पूंजीपति, शोषक वर्ग के
हाथों की कठपुती
बनी रहेगी स्त्री
कब तक ?
इस पूरे चक्र में
दोषी भी है स्त्री
क्यों मौक़ा देती है
वह ख़ुद को
प्रस्तुत करने को
क्यों दुत्कार नहीं देती
इस तरह की पहल
- शायद
चकाचाैंध की दुनिया के -
आगे वह
विवश है लाचार है
होड़ लेना चाहती है
ज़माने से
चाहें उसे चुकाना ही पड़े
ख़ुद को चुकाने को तैयार है
आधुनिक स्त्री
हर हदें
हर वो सीढ़ियां
हर वैसी प्रतिस्पर्धाएं
जिनसे दूसरी स्त्रियां
घिन्न करती हैं
मगर प्रवीणा
इन सबों को पार कर
आज वह महंगे बजट की
शीर्ष हीरोइन है ।
इसने हीरोइन बनने -
के पीछे कितनी सीढ़ियां
कितनी हरें पार की है
यह वह जानती है
मुस्कराते हुए
अंग्रेजी में इंटरव्यू देती है
दूसरों को नजर अंदाज करती
वह स्त्री
आज जमाने से अलग है