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की छेकै जिंदगी / कुंदन अमिताभ

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की छेकै जिंदगी
बस तनी देर
पलाश फूलऽ सें बात करेॅ देॅ
झब-झब मंजर के खूश्बू
जौरऽ करेॅ रेॅ।
बस तनी देर
निहारेॅ देॅ
कूँड़ चलौ रहलऽ छै
नहाबेॅ (नहाबेॅ) देॅ
तमसलऽ रौदा में घामऽ सें तरान लेॅ
लीखी पेॅ सिधियैलऽ जाय रहलऽ छै
कलेॅ-कलेॅ बैलगाड़ी मंजिल दन्नेॅ।
बस तनी देर
टिकली देखेॅ देॅ
डैनिया टिकली, ललकी टिकली
बधानी में गोबर के महक सूँघेॅ देॅ
अटिया डेगौंनी के स्वर सुनेॅ देॅ
डग्घर के हवा में घुललऽ दरद
भोरकरऽ रौदा के सर्दाहट
महसूस करेॅ देॅ।
बस तनी देर
सागऽ के घुमौनऽ खाबेॅ देॅ
केतारी चूसेॅ देॅ
आम चोभेॅ देॅ
ओर्हा खाबेॅ देॅ
सोजीना तरकारी के स्वाद चखेॅ देॅ
बचलऽ खुचलऽ खाना केॅ
कुतबा लेॅ परोसेॅ देॅ।
बस तनी देर
झमझम सुनेॅ देॅ झरिया के
भींजेॅ देॅ झरिया में
घोघी ओढ़े देॅ
बैहार जाय केॅ
खढ़ोय काटेॅ देॅ
बिचड़ऽ उखाड़ेॅ देॅ
हऽर जोती केॅ
रोपनी करेॅ देॅ
बस तनी देर
केपी सें घऽर आरो ओसरा साटेॅ देॅ
गोबर सें लीपेॅ देॅ अँगना
सनाठी सें लुक्का पाँती बनाबेॅ देॅ
दीया आरो चुकिया जलाबेॅ देॅ
लछमी घऽर दरिद्दर बाहर करेॅ देॅ
बस तनी देर
गामऽ के अँचरा सें लिपटेॅ देॅ
माय बाबू के गोदी सें चिपकेॅ देॅ
शीत वसंतऽ के खिस्सा सुनेॅ देॅ
बड़का खेत लगाँकरऽ
मौरका में नुकाबेॅ देॅ
धनकटनी के सुन्नर गीत सुनेॅ देॅ
बस तनी देर।