भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

की सखि, साजन? / भाग - 18 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

171.

छिकै प्रेम के मुखर कवियित्री,
दोहा, गजल के प्रखर कवियित्री,
नाम, यशोॅ के खूब छै दावा,
की सखि ‘नीलम’?
नैं सखि, ‘आभा’।

172.

कवियित्री छै, मधुर भाव के,
हँसमुखिया, सुन्दर सुभाव के,
बात में झलकै, खूब उछाह,
की सखि ‘आभा’?
नैं, ‘सांत्वना साह’।

173.

कविता, मीत, मिताई सूझै,
पीछू अपन कमाई सूझै,
धरनी मतर कहै नाकारा,
की सखि ‘राही’?
नहीं, ‘बेचारा’।

174.

अभी चलै छै पैय्याँ-पैय्याँ,
मस्त होय क गाय चिरैय्याँ,
ठोस बनल छै ठोकी-ठोकी,
की ‘अभय भारती’?
नैं, ‘तिरलोकी’।

175.

कवि कर्म में झलकै हूब,
माटी सें जुड़लोॅ छै खूब,
ढेर छै जिनको कलम सें आस,
की सखि ‘दिवाकर’?
नैं, आत्मविस्वास।

176.

जे, सब पर भारी रहलोॅ छै,
सब भाषा हारी रहलोॅ छै,
बोलै भर छै, जै में तेजी,
की सखि ‘हिन्दी’?
नैं, ‘अंग्रेजी’।

177.

प्रथम कवि अंगिका कहाबै,
यही नाम दोसरहौं गिनाबै,
वहीं सें आंगी के बुनियाद,
की सखि ‘कन्हपा’?
नैं, ‘सरहपाद’।

178.

भाषा केरोॅ कर्त्ता-धर्त्ता,
प्रारंभिक आंदोलन कर्त्ता,
भेलै शुरू में खूबे कष्ट,
की ‘सुभाष भ्रमर’?
नैं सखि, ‘अम्बष्ट’।

179.

खूब बजल, आंगी के बैंड,
बोली साथ गेलै ईंगलैंड,
साथें लै गेलअंग सनेश,
की सखि ‘मनाजिर’?
नहीं, ‘महेश’।

180.

नींव ईंट रोॅ, हिली गेलोॅ छै,
गीत नाद में, मिली गेलोॅ छै,
कहथौं, बस आपनोॅ करले ही,
की सखि ‘सरल’?
नैं, ‘श्री स्नेही’।