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की सखि, साजन? / भाग - 22 / दिनेश बाबा

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211.

जिनगी, जौनें अकछ बनाबै,
जहाँ-तहाँ, बल्हौं दौड़ाबै,
खुशी कभी, नै मानै पोस,
की सखि दुःख?
नैं, असंतोष।

212.

जें विवेक क, मारी दै छै,
बुद्धि क, संहारी दै छै,
जानों के नै रहै छै बोध,
की सखि दुश्मन?
नैं सखि, क्रोध।

जौनें, ठूंठोॅ क, पनपाबै,
जें, रस के संचार कराबै,
जिनगी के, निर्णायक गेम,
की सखि शादी?
नैं सखि, प्रेम।

214.

कत्तोॅ बुरा करै, कैन्हें नी,
मन उद्विग्न रहै, कैन्हें नी,
शांत करै मन, जेकरो दावा,
की सखि मौन?
नैं, पछतावा।

215.

आशंका ही, भरै छै जौनें,
डोॅर मनों में, करै छै जौनें,
काटी करी, जौं रस्ता जाय,
की सखि गीदड़?
नहीं, बिलाय।

216.

मन जेकरा बिन, होय छै करूवो,
मिलना-जुलना होय छै गुरूवो,
प्रेमी जन केॅ, लानै पास,
की सखि मुदा?
नैं, विश्वास।

217.

भुखला पेट में, एक्के काफी,
नश्ता ही, कहलाय तथापि,
भूख शांत के, करै भरोसा,
की सखि ‘लडू’?
नैं सखि, ‘डोसा’।

218.

कहलाबै, देवी अवतारे,
तभियो सहै छै, बलात्कारे,
कैन्हों छै हुनको लाचारी,
की सखि देवी?
नैं सखि, नारी।

219.

खान-पान, असनान कराबै,
मन में, आपनो ध्यान कराबै,
मन, पावन आरू तन करै चंगा,
की सखि पोखर?
नैं सखि, गंगा।

220.

काम में, हेरा-फेरी होय छै,
साथे, रिश्वतखोरी होय छै,
मतर कि मधु मिश्रित छै बानी,
की सखि धूर्त्त?
नहीं, किरानी।