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की सखि, साजन? / भाग - 25 / दिनेश बाबा

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241.

मर्यादा साहित्य रोॅ तोलै,
सबसें हाँसी करी क बोलै,
‘भैरोक्का’ रो कहलक हाल,
की सखि ‘सरल’?
नैं, ‘डॉ. श्यामलाल’।

242.

लघु कथा रं, लघुकायछै,
मतर कि चर्चित, खूब आय छै,
निज जातिहौ केरोॅ ज्योति पुंज,
की सखि ‘दिलवर’?
नैं, ‘पारसकुंज’।

243.

हरवै छै संताप हृदय के,
करलो होलो पाप हृदय के,
बिन जेकरा नैं प्राण पुनीता,
की सखि ‘मानस’?
नैं सखि, ‘गीता’।

244.

सुन्दरी लागै छुई-मुई रं,
जना विदूषि धुनल रूई रं,
कुंठित सोच, ‘गुरूं की कहतोॅ’,
की सखि ‘आभा’?
नैं, ‘नीलम महतो’।

245.

एक चदरिया, अनगिन टांका,
पर अछोर एकदम्में फांका,
छै विस्तृत पर लागै तंग,
की सखि धरती?
नहीं, सरंग।

246.

दूर-दूर तक सफर करै छै,
पता प जाय क खबर करै छै,
तित्तोॅ, मिट्ठो, या खट-मिट्ठी
की सखि डाकिया?
नैं सखि, चिट्ठी।

247.

पाकिट, पर्स, तजूरी नांपै,
सौंसे जगत के दूरी नापै,
जेकरोॅ सगरोॅ उड़ै पताका,
की सखि चोरा?
नैं सखि, टाका।

248.

चेला, ”ठाकुर अनुकूल“ के,
तन, मन, गीतो, गाछ फूल के,
मृदुभाषी, मोहक गीतकार,
की सखि ‘अनल’?
नैं ‘राजकुमार’।

249.

गरम में आबै, ताप भगाबै,
जहाँ-तहाँ सें अंग भिंजाबै,
मुसकिल होय जब हुवै हसीना,
की सखि बरखा?
नहीं, पसीना।

250.

बाहर की, भीतरो झलकाबै,
जौनें असली रूप देखाबै,
जेरा करोॅ वें करै वहेॅ ना,
की सखि बंदर?
नैं सखि, ऐना।