भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

की समर्पित थी कभी आराधना कोई नहीं / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

की समर्पित थी कभी आराधना कोई नहीं।
जो मिला उस को सहेजा कामना कोई नहीं॥

युग चरण अर्पित हृदय प्रिय
दो न तुम वरदान कोई,
स्वप्न सौंपा है तुम्हें
करना न अब अनुदान कोई।

अनायाचित तुम मिले की याचना कोई नहीं।
जो मिला उसको सहेजा कामना कोई नहीं॥

चल पड़े हम जब कहीं भी
पग तले सोपान आये,
प्यास से चटका हुआ यह
कण्ठ क्या मधु दान पाये।

लक्ष्य पाने के लिए की साधना कोई नहीं।
जो मिला उसको सहेजा कामना कोई नहीं॥