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की हेमन्त हेम-अन्त छेकै / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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के कहै छै कि हेमन्त
हेम हेनोॅ दिनोॅ के अन्त छेकै?
मानलौं कि एकरोॅ ऐथैं
मयूर के पंख झड़ेॅ लागलोॅ छै
भौरा के मुँहोॅ पर
सिल पड़ेॅ लागलोॅ छै
कोयल कुकतै तेॅ की
कोय चिड़ियाँ
सरंगोॅ दिश मुँहो नै फेरे छै;
तभियो की होय छै
हेमन्त
हेम हेनोॅ दिनोॅ के अन्त थोड़े छेकै!
जे हेने होतियै
तेॅ दूर-दूर तांय खेतोॅ मेॅ
केना केॅ लहलहैतियै, गेहूँ अरो जौ
जेकरौ माँतवोॅ के नै ओर छै
नै छोर
जे देखी के केतारी के मनो
हेने गुदगुदाय उठलोॅ छै
कि ओकरोॅ सौंसे देह
भरी गेलोॅ छै रसोॅ से
नै ओर, नै छोर।