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की हे जी, हाथे मा लोटिया बगल मा धोतिया / अवधी

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   ♦   रचनाकार: सिद्धार्थ सिंह

की हे जी, हाथे मा लोटिया बगल मा धोतिया, जनक जी चले हैं नहाय
की हे जी, आजु चौपरिया लिपायो मोरी रनिया, पूजब सालिगराम
की हे जी, सुरहिनी गैया क गोबरा मंगायों, गंगा जमुनवा क नीर
की हे जी, झुक धरि लीपन्ही बेटी जानकी, धनुष दिहिन खसकाय
की हे जी, नहाई धोई जब लौटे जनक जी, पड़ी चौपरिया निगाह
की हे जी, आजु चौपरिया कवन रनिया लीपिन, धनुष दिहिन खसकाय
की हे जी, रोजु त लीपहि सोन चिरैय्या कौशल्या, तिल भरि सरकि न पाए
की हे जी, आजु त लीपिन बेटी जानकी, धनुष दिहिन खसकाय
की हे जी, इतनी बचन राज सुनयू न पायें, कीन्हि नगर मा शोर
की हे जी, जो धनुहा तूरी लेइहैन वही कुलभूसन, सीता ब्याहि लई जाएँ
की हे जी, यह प्रण कीहन्यो जो बाबा मोरे, तोर प्रण हमै न सोहाय
की हे जी, जो धनुहा तॊरि लैहैं बन के असुरवा हमका ब्याहि लई जाएँ ??