कुँअर उदयसिंह अनुज के दोहे-4 / कुँअर उदयसिंह 'अनुज'
साफ़ा पगड़ी धोतियाँ, रहा न इनका साथ।
लाल छींट की लूगड़ी, अब हो गयी अनाथ।
हँसली पाजब करधनी, खिलते बाजूबंद।
नये दौर में पड़ गयी, इनकी आभा मंद।
अब दुल्हन का घूँघटा, चला गया है चीन।
मण्डप में खी-खी करे, नयना संग नवीन।
गाँवों से गुम पालकी, डोली लिये कहार।
फुर्र हुईं अब दुल्हिनें, बैठ इनोवा कार।
बाहर जैसा हो गया, घर में भी व्यवहार।
बहू सुनाये सास को, दो के बदले चार।
दादी भूलीं वारता, नानी लोरी गीत।
जादू टी वी का चला, हुई उसी की जीत।
दूध होटलें पी गईं, छाछ बिलौना बन्द।
मथनी गाती थी कभी, माखन लिपटे छन्द।
दादाजी गुमसुम हुए, घर में ही अनजान।
कम्प्यूटर में फँस गई, बच्चों की मुस्कान।
मैं आया घर आपके, नहीं दिया कुछ ध्यान।
आँखें टी वी पर टिकीं, मोबाइल पर कान।
उमर अढ़ाई की हुई, बस्ता लादे पीठ।
आँसू लुढ़के देखती, मम्मी कितनी ढीठ।