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कुँइअमा के पानी माई हे, कुँइअमें सूखि गेल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कुँइअमा<ref>कुएँ</ref> के पानी माई हे, कुँइअमें सूखि गेल।
नवरँग, कत्ते<ref>कितना</ref> दले आबै बरियात॥1॥
हथिया अचासे आबै, घोड़बा पचासे आबै।
नवरँग, राने राउते आबै बरियात॥2॥
इहे सुनि बेटी बाप, मनहिं बेदिल भेल।
नवरँग, ठोकि लेल बजर केबार॥3॥
घर सेॅ बाहर भेली, बेटी से सीता बेटी।
नवरँग, खोलु बाबा, बजर केबार॥4॥
ऐतै<ref>आयगा</ref> बरिअतिया बाबा कौने अरोधत<ref>सत्कार करेगा</ref>।
नवरँग, कौने करत धिआ दान॥5॥
एतै बरिअतिया माय हे, हमहिं अरोधब।
नवरँग, हमहिं करब धिया दान॥6॥
घर पिछुअरबा में, लोहरा रे भैया।
नवरँग, एक गो हरफ<ref>अक्षर; लकड़ी का एक प्रकार का पच्चड़</ref> दे बनाय॥7॥
ओहि हरफिया माय हे, अगुआ<ref>वह व्यक्ति, जो लड़का ठीक करने जाता है</ref> के ठोकब।
नवरँग, जिनि लैलन, ओछे बेबहार॥8॥
लहँगा उदासे लैलन जेबर पुराने लैलन।
नवरँग डलबो त लैलन पुरान॥9॥
घर सेॅ बाहर भेल, दुलहा दुलरुआ बाबू।
नवरँग, अगुआ के कौने कसूर॥10॥
लहँगा बदली देब, जेबर बदली देब।
नवरँग, डलबा त देब बदलि॥11॥

शब्दार्थ
<references/>