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कुँवारी दृष्टि / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
१.
नेत्र विष, अमृत हैं, शराब भी हैं
मधुप हैं, चाँद हैं, गुलाब भी हैं
कौन इन पर न मरे, जिये, झूमे!
मौन हैं, प्रश्न हैं, जवाब भी हैं