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कुँवारी धूप / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
हल्दी के
सपने आँखों में
सजा रही,
सरसों के
फूलों सँग
खड़ी कुँआरी धूप
थोड़ी-सी
ही बड़ी हुई है
फुदक रही,
एक ख़ुशी
उसके अंदर से
छलक रही
बाद शिशिर के
लगती
कितनी प्यारी धूप
आँखों में
मधुमास-मिलन
के सपने धर,
नज़र रख रही
वह सेमल की
डाली पर
छुईमुई-सी
सिमट रही
बेचारी धूप
आएँगे
दिन जीवन में
टेसू वाले,
होंगे सुर्ख
अधर पर
महुआ के प्याले
सोच-सोच
खिल उठी
पुनः सुकुमारी धूप।