कुंडल मुकुट, कांट काछनी, तिलक भाल,
'सोमनाथ कहैं, मंद गवन मनोहरा।
वारिये री कोटि, मनमथ की निकाई देखि,
भृकुटी नचावै री रचावै चित मोहरा॥
बडे-बडे नैन, पुनि साँवरे बरन वर,
लोगनि कौ लंगर, लुभावै पढि दोहरा।
आवै नित मुरली बजावै, तान गावै यह,
छरहरौ कौन कौं छबीलौ छैल छोहरा॥