भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुंभ / संजय पुरोहित
Kavita Kosh से
अघोरी धुंआ
फाकामस्तं अययाशी फकीरी हुनर
माटी की चिलम
बेफिक्री का सुट़टा
भभूत रंगी देही
राख रमा मन
चंदन गूंथी जटा
जंतर मंतर वाणी काजल मसाणी
जबर हठ अबोले मठ
जोगी भोगी योगी
बेरंग बेमेल बेढब
माला मोती मनके
तावीज बंधे प्रेत
और
बिसरे चेहरों
को अधपक नैनों से धकेलती
अधलेटी पलकें
एक डुबक डुबकी से
नदी उजासे
मैला तम
डूबा मन
कराये
भौसागर पार
देखूं विचारूं
छिपा है
इस मायावी बदरंग
में ही
रंग खरा ?
क्याख ये
चितराम
क्षितिज पार
से है
न्यौतता मुझे ?