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कुइयाँ रोॅ पानी केॅ पीयेॅ नै दै छै / अमरेन्द्र

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कुइयाँ रोॅ पानी केॅ पीयेॅ नै दै छै
बीच्हे सेँ खीचै छै कौने उछैन।

कण्ठोॅ में जेठोॅ-वैशाखोॅ रोॅ जोर छै
आँखी रोॅ आगू मेँ पानी छै, लोर छै
हमरे संग कुट्ठोॅ व्यवहार ई अरबद्दी केॅ
दूर करै प्यासला सेँ पोखर केॅ नद्दी केॅ
किच्चिन रँ हेरै छै ई जिनगी डैन।

हमरा ठेलियावै-दै कोहनी रोॅ धक्का
पानी चभकोरै छै दै-दै चभक्का
ठनकोॅ जल निर्मल-छै महकै लोहैन्नी रँ
भभकै छै कादोॅ होय एकदम विषैन्नी रँ
जिनगी घिमाठोॅ-धुवैन्नोॅ-कसैन।

जानै नै पारलौ कि हम्में अपैतोॅ
जिनगी मरकाठे सन है रँ विषैतोॅ
हमरे ही वक्ती अनकिरतोॅ अरबद्दी केॅ
खींचै लेॅ फँसरी रँ गल्ला रोॅ बद्धी केॅ
सुख तेॅ धमैन लागै, दुक्खे पड़ैन।