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कुकडूँ-कूँ / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
मुर्गा है एलार्म-घड़ी
बातें करता बड़ी-बड़ी!
तड़के बाँग लगाता यूँ
कुकडूँ-कूँ, भई, कुकडू़ँ-कूँ!
कहता है-जागो भाई,
सुबह कर रही अगुवाई!
सुबह-सुबह यदि सोते हो,
तन में आलस बोते हो!
बात पते की कहता हूँ,
कुकडू़ँ-कूँ, भई, कुकडू़-कूँ!
जो जगते हैं सुबह-सुबह,
उन्हें नहीं आलस का भय!
दिन भर ताजा रहते हैं,
नदियों जैसे बहते हैं!
मैं भी ताजा रहता हूँ,
कुकडू़ँ-कूँ, भई, कुकडू़-कूँ!