भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुक्कू जी ने मेला देखा / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुक्कू जी थे खूब रंग में,
कुक्कू जी ने मेला देखा!

मेले में देखी एक गुड़िया
टोप लगाए गुड्डा देखा,
ढाई मन की धोबन देखी
हा-हा हँसता बुड्ढा देखा।
बड़ी भीड़ थी, धक्कम-धक्का,
झंझट और झमेला देखा!

गरम इमरती खूब उड़ाईं
जी भर करके लड्डू खाए,
फिर दौड़े झटपट अनार के
चूरन की एक पुड़िया लाए।
घुँघरू बाँधे ठुन-ठुन करता,
जलजीरे का ठेला देखा।

मोटे हाथी पर बैठे थे
एक मोटे-ताजे लाला जी,
हँसकर बोले-आओ-आओ,
कुक्कू ने तो बस, टाला जी।
शीशमहल में नाटी-तिरछी,
शक्लों का एक रेला देखा।

एक जगह बंदूक और थे
टँगे हुए ढेरों गुब्बारे,
कुक्कू जी ने लगा निशाना
फोड़ दिए सारे के सारे।
ले इाम आए दंगल में-
किंगकौंग का चेला देखा।