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कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं / शैलेन्द्र सिंह दूहन

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रिसते छाले शूल लिखूँ मैं,
कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं।
मूक दबों की चीख लिखूँ मैं
पेट भरों की भीख लिखूँ मैं,
झूठे भाषण नारों में बह
जनता करती भूल लिखूँ मैं।
कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं।
जुगनू बनते ढाल लिखूँ मैं
चंदा की हड़ताल लिखूँ मैं,
रिश्वत की मदिरा पी चढ़ता
सूरज टूलम-टूल लिखूँ मैं।
कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं।
सदियों लम्बी रात लिखूँ मैं
अपनों के आघात लिखूँ मैं,
भूखों की है सेज बनी वो
फुटपाथों की धूल लिखूँ मैं।
कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं।
आदर्शों की मार लिखूँ मैं
विधवा का सिंगार लिखूँ मैं,
सब कुछ कहता मौन तने का
दीमक लागी मूल लिखूँ मैं।
कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं।
साँसे बनती बोझ लिखूँ मैं
आँसू लिपटा ओज लिखूँ मैं,
चूते छप्पर उड़ती टाँटी
सावन ऊल-जलूल लिखूँ मैं।
कुचले बेबस फूल लिखूँ मैं।