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कुछ ऐसा था / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
कुछ ऐसा था जो अब भी
हम लोगों को एक दूसरे से जोड़ता था
अब भी हम एक दूसरे की ज़रूरत थे
अब भी ख़त्म नहीं हुई थी
संवाद की गुंजाइश
अब भी कुछ ऐसा था
हम लोगों के बीच
जो हत्यारे की पकड़ से बाहर था
जिस पर हत्यारे का हाथ डालना नामुमकिन था
और इसलिए मैं निश्चिंत था
कि फिर शुरू होगी
बातचीत पहले की तरह
और तब हमारे बीच
हत्यारा कहीं नहीं दिखाई देगा।