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कुछ ऐसे ढंग से टूटा है आइना दिल का / तलअत इरफ़ानी


कुछ ऐसे ढंग से टूटा है आइना दिल का,
हर एक अक्स नज़र आ रहा है टेढा सा।

हुआ जो शख्स ख़ुद अपनी ही कोख से पैदा,
वोह अपने क़त्ल की साज़िश में भी मुल्लव्विस था।

हरेक पहलू पे ख़ुद को घुमा लिया मैने,
किसी भी आँख का लेकिन न ज़विया बदला।

उछल के गेंद जब अंधे कुएं में जा पहुँची,
घरों का रास्ता बच्चों पे मुस्कुरा उठता।

खिराज क़र्ज़ की सूरत अदा किया हमने,
हमारे शाह ने फिर भी हमे गदा समझा,

मैं हर सवाल का तनहा जवाब था तलअत,
मेरे सवाल का लेकिन कोई जवाब न था।