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कुछ और फुटकर शेर / फ़ानी बदायूनी

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यूँ सब को भुला दे कि तुझे कोई न भूले।

दुनिया ही में रहना है तो दुनिया से गुज़र जा॥


क्या-क्या गिले न थे कि इधर देखते नहीं।

देखा तो कोई देखनेवाला नहीं रहा।।


एक आलम को देखता हूँ मैं।

यह तेरा ध्यान है मुजस्सिम क्या॥


फ़ुरसते-रंजेअसीरी दी न इन धड़कों ने हाय।

अब छुरी सैयाद ने ली, अब क़फ़स का दर खुला॥


मंज़िले-इश्क़ पै तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी।

थक-थक कर इस राह में आख़िर इक-इक साथी छूट गया॥