कुछ कमियाँ हैं फिर भी / हरिवंश प्रभात
कुछ कमियाँ हैं फिर भी वह रिजेक्ट नहीं है।
कोई भी इन्सां एक़दम परफेक्ट नहीं है।
मौसम की सियासत भी बहकी हुई लगती है,
बारिश के लिए बस्ती मेरी सेलेक्ट नहीं है।
सूरज से ली है रौशनी, चंदा से चाँदनी भी,
पर इंसानियत की ख़ुशबू कलेक्ट नहीं है।
सरकारें पढ़ती हैं, छात्र लेते डिग्रियाँ हैं,
पर नौकरी देने का कोई सब्जेक्ट नहीं है।
कुत्ते ने कहा मिली-जुली सरकार बनाएँगे,
बिल्ली ने कहा अभी तक कोई पैक्ट नहीं है।
नदी का पानी बह गया, पर खेत रहा सूखा,
फारेस्ट तो यहाँ ख़ूब, पर प्रोटेक्ट नहीं है।
नेता जो बोलता है उसे ग़ौर से सुनोजी,
कैसे कह सकते हो, इसमें फैक्ट नहीं है।
नर से बना नराधम, ख़तरनाक खेल हवस का,
फिर भी समाज में वह नेगलेक्ट नहीं है।
झोपड़ी जैसा मेरा घर, भले ही शहर में है,
प्रभात घर बेधड़क आ, भले ही नेमप्लेट नहीं है।