कुछ क्षणिकाएँ / अनुपमा तिवाड़ी
1.
मैंने सारे शब्द पढ़ लिए
बस तुम्हारा नाम ही पढ़ने में नहीं आया ...
2.
जब भी कुछ टूटता है
कितना कुछ दरक जाता है
भीतर तक.
3.
उम्र के साथ,
प्रेम पकता है.
4.
इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि
तुम्हें याद करते हुए, एक कविता रच जाए...
5.
तुम्हें याद करते हैं
चाँद
तारे
नदी
और मैं !
6.
अपने प्रिय का
शहर में होना,
सारे शहर का अपना होना है.
7.
विचारों के शिखर पर
उग आती है
एक कविता ...
8.
कैसे कोई किसी के दिल में चुप से आ बैठता है
कि कोई कहता है
तुम्हारे जाने से ये शहर वीरान हो गया है ...
9.
धरती से आसमान तक रंगों और रिश्तों की एक बड़ी रेंज है
मैंने दोनों को अपनी बाँहों में भर लिया है...
10.
उसने बाल क्या कटवा लिए
एक शहर हीरो हो गया ...
11.
उसने जब से आसमानी साड़ी पहनी है
तभी से आसमान
आसमानी हो गया है ...
12.
ये बादल बड़े आवारा होते हैं
कभी – कभी मुझे छू – छू कर निकलते हैं.
13.
वह जो है
उसे वह बने रहने की कीमत कितने मोर्चों पर चुकानी पड़ी है
पर, वो हर कीमत छोटी है
उसका वो होना बहुत बड़ा है.
14.
तुम्हारे समर्थन में
आवाज़ है
या मौन ?
15.
पिता रहते हैं बेटों के पास
पर बेटियाँ ले जाती हैं
आँखों की कोर में उन्हें !
16.
आँखों की कोर में बैठी,
पानी की बूँद
नापती है दूरी,
मेरे और बच्चों के बीच की.
17.
कामकाजी माएँ छोड़ जाती है
अपने बच्चों के पास,
गुड़ियों में धड़कता,
अपना दिल.
18.
वो मुक्त करता गया
वो बँधती गई ...
19.
सब मीराओं को
जहर का प्याला पीना पड़ता है...
20.
जीवन में कितने सारे काम,
बिना काम के
काम होते हैं.
21.
सब पत्थरों से मकान नहीं बनते
फिर भी हम कितनी ही बार
बेवजह पत्थर उठाते रहते हैं.
22.
लम्हे,
रास्ते में रोक पूछते हैं,
मेरा हाल
मैं नज़रें चुराकर निकल जाती हूँ...
23.
कितना ही समझाओ इन आँसुओं को
पर, कभी – कभी तो ये अनुशासन तोड़ ही देते हैं...
24.
अब कोई शब्द इधर – उधर नहीं बिखरा हुआ है
मैंने सारे शब्द गुल्लक में डाल दिए हैं ...
25.
मकान की मंजिलें
मिट्टी से पैर दूर करती जाती हैं...
26.
आँखें देखती ही नहीं
तोलती भी हैं...
27.
उसने जब भी कुछ पौधे रोपे
पौधे नहीं,
अपनी इच्छाओं के कुछ टुकड़े रोपे.
28.
मन – मन
चुप हैं
पर,
बतिया रहे हैं.
29.
उन्होंने सयाना होना चुना
और सयाना होने की सारी गलियाँ जानने के बाद
हमने, बेवकूफ होना चुना.
30.
बाजार में दोस्त सस्ते में बिक रहे थे
हमने कुछ दुश्मन खरीद लिए.
31.
समझौते के लेखक
तीरकमान नहीं लिखते.
32.
बाजार में सब कुछ मिलता है
पर, सब कुछ कहाँ मिलता है ?
33.
सबके हिस्से के बादल आसमान में थे
मैंने हाथ बढ़ाकर एक टुकड़ा ले लिया है.
34.
आँख मिलाने से कतराते हो
और
गले लगने की बात करते हो ?
35.
किसी आदमी से कोई आदमी
पूरा – पूरा अलग नहीं होता
रह जाता है आदमी के अन्दर
थोड़ा – थोड़ा जाने वाला आदमी.
36.
वो कहते हैं कि,
हम समझते नहीं हैं
पर वो जानते हैं कि,
हम समझते हैं.
37.
उन्होंने हाथ जोड़े
पैर काटे.
38.
ओ, स्त्री !
ये जीवन रंग, कहाँ से झोली में भर कर लाती हो
कि पुरुष की अतल रिक्तता भरने पर भी ये रीतते नहीं !
39.
वो सपना बुनती है
कुछ आँखों में जाला बन जाता है.
40.
कस्बई आँखों में गड़ती है
औरत की बेफिक्र चाल.
41.
कभी - कभी डर लगता है
जब चेहरा उतर कर रुमाल की तरह
हाथ में आ जाएगा
और हाथ - पैर
कहना मानने से मना कर देंगे ...
42.
मेरी कलम में रहते हैं
हरसिंगार जैसे कोमल, महकते
और कैक्टस जैसे नुकीले, धारदार शब्द !