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कुछ जाणता हो तै हाथ देखीऐ मेरा / मेहर सिंह

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कुछ जाणता हो तै हाथ देखीऐ मेरा।टेक

क्यूं सूर्य कै गैहण लाग्या क्यूं चन्द्रमा के लागी स्याई
ऋतुभान ग्यारह रुद्र कर कै बैठे सात सभाई
समझ सकै तै पड़वा दोज सोमवती मावस कैसे आई
काणे के घरां जाकै ईद मनावण चाली
तेरह महीने वर्ष समझ सका ना छली
मूढ़ कति दती द्वार किले की पाईना तानी
मेरे प्रश्न का उत्तर दे क्यों फीका पड़ग्या चेहरा।

सीता ठाई किस तारिख नै वा तिथी खोल कै लिखदे वार
कै महीने कै दिन रही वा रावण के दरबार
मारीच बण्या था मृग स्वर्ण का कोणसा था वो दिन और वार
रेखा तै देख मेरी जै कुछ तेरी बुद्धि मैं विचार हो
संगत कुणसी आछी जहां देवत्यां का प्रचार हो
इस का उत्तर नहीं तै इस गंगा जी तै बाहर हो
इस ज्योतिष का ज्ञान लगा दे तरै बन्ध ज्यागा सेहरा।

चार वेद छः शास्त्र तूं ठा रहा तै गिणा दे पुराण
ऐसा देव कुणसा है जो सृष्टि को लाग्या खाण
ये पोथी पतरे बन्द कर दे ना तन्नै क्यांहे की जाण
तीज तै मनाई क्यूं सामण का व्यवहार क्या
मद में हो कै मोर नाचै ऋतु की बहार क्या
कितने मौसम साल मैं कितने हैं त्यौहार क्या
ना मैं तेरी गंगा जी तै कती ठा द्यूंगा डेरा

तम कितना कौम के ब्राहमण सो कितनी है थारी नस्ल बता
सारी सोच सोच कै असल बता
इस ज्योतिष का ज्ञान लगादे कर कै नै कुछ अकल बता
उड़ै दहिया कै म्हां आ जाईए जड़ै बसै सै गाम बरोना
तेरी ज्योतिष का भेद बता द्यूं जणुं टाली मैं रोना
बखत डूब ज्या कदे हंसा दे कदे पड़ज्या सै रोना
मेहर सिंह तूं बूझ लिए जड़ै बंधै गुरु के सेहरा।