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कुछ टूटे-फूटे आखर / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
कुछ टूटे-फूटे आखर, कुछ सूखे-सिमटे पोखर
कुछ बतियाता पनघट से बहता पानी,
कुछ सर्द हवा, कुछ नम आँखें
कुछ घूँघट में लरज़ उठी अकुलाहट,
कुछ रामभरोसे की दोने भर चाट-पकौड़ी
कुछ अल्लारखा की कुल्हड़ की चाय
कुछ गुड़िया के गहने
कुछ बुढ़िया के बाल
कुछ जाना-पहचाना
कुछ नया अनोखा
कुछ शहर, शहर की गठरी भर सौगातें
कुछ पेड़, पेड़ पर इतराते सावन के झूले
कुछ नज्मे, नई-पुरानी।