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कुछ टूटे सपनो की किरचें कुछ यादों की कतरन / अर्चना जौहरी

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कुछ टूटे सपनों की किरचें कुछ यादों की कतरन
आज इसी की गठरी खोले बैठा मेरा ये मन

टूटे-फूटे कुछ वादे और कुछ खुतूत के टुकड़े
इन्हें संजोए बैठी है इक सहमी-ठिठकी बिरहन

कभी कहीं इक मोड़ पर छूटा था इक दिन इक लम्हा
ढूँढ रही है उस लम्हे को अब तक मन की जोगन

कुछ बातें जो कही नहीं थी वह भी तो हैं इसमें
दबी-दबी-सी कुछ मुस्काने और थोड़ी-सी उलझन

धीरे-धीरे सब छूटे कुछ लेके और कुछ देके
है उनसे है आज भी महका मन का मेरे आँगन

साज-सिंगार किए रहती हूँ मैं हूँ नार-नवेली
पता नहीं किस मोड़ पर जाने मिल जाएँ फिर साजन