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कुछ ट्रेनें ऐसी भी/ अमरनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कई बार टूटे हैं
एक बार और सही
यदि कोई मोहपाश
काम नहीं आए तो
रेशे-रेशे होकर
बिख़र-बिख़र जाए तो
बेवजह हवाओं में
गाले मन्दारों के
कई बार फूटे हैं
एक बार और सही
परिचय-आकर्षण की
स्नेह की, समर्पण की
कितनी मुद्राएँ हैं
छोटे से दर्पण की
निष्ठुर हैं चँचल छायाएँ
तो कई प्यार —
कई बार झूठे हैं
एक बार और सही
कुछ ट्रेनें ऐसी भी
द्रुतगामी होती हैं
जो शहरों से शहरों के
रिश्ते ढोती हैं
जिनके आगे हम हैं
स्टेशन छोटे तो
कई बार छूटे हैं
एक बार और सही