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कुछ ढंग का लहो / त्रिलोचन

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हुए तुम दूर हो

क्या हुआ ख़ुश रहो


अलगाया रास्त

तो कैसा वास्ता

आगे ही आगे

आगे गैल गहो


कहीं जाय कोई

दिशा नहीं खोई

जीवन से जीवन

की बात कहो


ये वे सब सपने

कितने दिन अपने

खोते-खोते भी

कुछ ढंग का लहो ।