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कुछ तो अपने लिये बचाया कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
कुछ तो अपने लिये बचाया कर।
ख़ुद को इतना भी मत पराया कर।
जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए,
ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर।
इसे बस तू ही याद रहती है,
दिल को इतना भी मत पढ़ाया कर।
लोग बातें बनाने लगते हैं,
यूँ इशारों से मत बुलाया कर।
लौ की नीयत बहक न जाए कहीं,
दीप होंठों से मत बुझाया कर।
आइना जिस्म ही दिखाता है,
आइने पर न तिलमिलाया कर।