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कुछ तो आता मेरी बातों का जवाब / शकेब जलाली
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कुछ तो आता मेरी बातों का जवाब
ये कुआँ और जो गहरा होता।
न बिखरता फ़िज़ा में नग़मा
सीन-ए-नै में तड़पता होता ।
और कुछ दूर तो चलते मेरे साथ
और इक मोड़ तो काटा होता ।
थी मुक़द्दर में ख़िजाँ ही तो शकेब
मैं किसी दश्त में महका होता ।