कुछ तो कलमनवीसी का हमको हुनर नहीं
कुछ आपकी शागिर्दी ने आवारा कर दिया
जाते थे पहले भी निकाले महफ़िलों से हम
इस बार साफगोई ने बंजारा कर दिया
कब तलक बेचें शाइरी रोटी के वास्ते
ईमान के खजाने ने नाकारा कर दिया
माशूकों की बस्ती में रोज़ होती चाँद-रात
हमको तो फ़िक्रे-बल्ब ने बेचारा कर दिया
घर में न सही दिल में जगह तो शपा को दो
अख़लाक़ ने दुश्मन को भी हमारा कर दिया