भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ तो कलमनवीसी का हमको हुनर नहीं / शर्मिष्ठा पाण्डेय
Kavita Kosh से
कुछ तो कलमनवीसी का हमको हुनर नहीं
कुछ आपकी शागिर्दी ने आवारा कर दिया
जाते थे पहले भी निकाले महफ़िलों से हम
इस बार साफगोई ने बंजारा कर दिया
कब तलक बेचें शाइरी रोटी के वास्ते
ईमान के खजाने ने नाकारा कर दिया
माशूकों की बस्ती में रोज़ होती चाँद-रात
हमको तो फ़िक्रे-बल्ब ने बेचारा कर दिया
घर में न सही दिल में जगह तो शपा को दो
अख़लाक़ ने दुश्मन को भी हमारा कर दिया