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कुछ तो बोलो! / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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बैठे रहो मौन साधे मत
कुछ तो बोलो! कुछ तो बोलो!!

जीवन का मतलब है चलना
संघर्षों में तपना जलना
तट बन्धों से टकरा कर भी
लहरों सा, सिर उठा मचलना
दर्द बाँट लें अपने-अपने
 मन हलका लें
गाँठें खोलो!

अन्तहीन हैं अपनी राहें
जब तक जीना तब तक चलना
सागर में लय होने तक तो
रुकता नहीं नदी का बहना
 पर्वत वन कछार के अधरों
  जीवन का यह
मधुरस घोलो!

अपने और बिराने सपने
हुये कहाँ किसके कब अपने?
जो भी आया लुटा यहाँ पर
छोड़ा किसे भरम के जग ने
 सिक्के बचे खरे या खोटे
  उन्हें सँभालो!
उन्हें टटोलो!!